मिसाल थी सुनील दत्त और राजेन्द्र कुमार की दोस्ती
फ्लैशबैक
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राजेन्द्र कुमार अपनी पहली मुलाकात में मुझे कुछ अहंकारी से लगे लेकिन बाद की मुलाकातों में उनका एक मिलनसार रूप सामने आया। फिल्मों में उन्हें इतनी सफलता मिली कि वह जुबली कुमार कहलाए,लेकिन सन 70 के बाद राजेश खन्ना के उदय के साथ ही राजेन्द्र कुमार का पतन शुरू हो गया। यहां तक कि उन्होंने अपना बंगला भी राजेश खन्ना को बेच दिया। अपनी इस यात्रा के दौरान कुमार ने सुनील दत्त और राज कपूर जैसे दोस्त भी बनाए लेकिन रीमा कपूर और कुमार गौरव का रिश्ता टूटने से यह दोस्ती भी टूट गई। जुबली कुमार के मन में इस बात का मलाल भी रहा कि इतनी हिट देने के बाद उन्हें फिल्म फेयर जैसे अवार्ड नहीं मिले। बाद में अपने सपने अपने बेटे कुमार गौरव में देखते हुए राजेन्द्र कुमार ने गौरव को लेकर ‘लव स्टोरी’ जैसी सुपर हिट फिल्म बनाई मगर ‘लव स्टोरी’ की सफलता को पिता-पुत्र पचा नहीं पाए।
प्रदीप सरदाना
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राजेन्द्र कुमार को अपनी और गौरव की गलती का अहसास बाद में हुआ भी। इस बात के संकेत मैंने राजेन्द्र कुमार की उन बातों में साफ देखे जो उन्होंने मुझसे तब कहीं जब हम एक शाम काफी रिलेक्स मूड में बैठे थे। उन्होंने कहा कि क्या बताऊं आजकल के स्टार एक हिट के बाद ही सातवें आसमान पर पहुंच जाते हैं ,चाहे मेरा बंटी कुमार गौरव) हो या कोई और। इससे जितनी जल्दी ये ऊपर चढ़ते हैं उससे कहीं ज्यादा जल्दी से नीचे उतर जाते हैं। बंटी के मामले में कहीं मेरी सोच में भी गलती रही होगी लेकिन जहां तक मेरे अपने करियर की बात है मैंने अपनी हर फिल्म बहुत ही सोच-समझकर साइन की। फिर साइन करने के बाद मैंने उस फिल्म को लेकर उसकी सभी बारीकियों, उसकी सभी प्लानिंग को समझता था। आप यकीन नहीं मानेंगे पर मैं आपको बताऊं कि ऐसा कई बार हुआ जब मैं खुद फिल्म की लोकेशन तक देखने जाता था। फिल्म की स्क्रिप्ट तो पूरी घोल कर पी जाता था,एक-एक सीन पूरी तरह दिमाग में बैठ जाता था। साथ ही संगीतकार कौन है, गायक कौन है, गीत किसने लिखे हैं, क्या लिखे हैं वे सब तक जानने की कोशिश भी करते थे। राजेंद्र कुमार की एक-एक बात ऐसी थी कि सुनते चले जाओ। उस रात तो उन्होंने अपने दौर की ऐसी- ऐसी बातें बतायीं कि उस दौर की पूरी तस्वीर हम उन बातों से अपने जहन में बसा सकते हैं। राजेन्द्र कुमार की एक-दो जो और बातें याद आ रहीं हैं हैं वो ये हैं कि उनके समय में पूरी टीम को बराबर अहमियत दी जाती थी। वह बता रहे थे- ‘यदि कोई एक्स्ट्रा आर्टिस्ट या स्पॉट बॉय भी कोई सुझाव देता था तो उस पर गौर किया जाता था। हम सभी लोग मिलकर खाना खाते थे। हम लोगों का खाना चाहे घर से आता था लेकिन सभी एक-दूसरे के टिफिन से खाना निकाल लेते थे। उससे एक-दूसरे को उसके परिवार को जानने के साथ प्रेम बढ़ता था, लंच के दौरान फिल्म के अलग अलग सीन पर भी खुलकर बातचीत और सलाह-मशविरा हो जाता था। अब इतने एफट्र्स होंगे तो फिल्म भला अच्छी कैसे नहीं बनेगी। ‘
बहरहाल कुमार गौरव की असफलता का मलाल जुबली कुमार के चेहरे पर साफ दिखता था। इससे वह कुछ चिड़चिड़े भी हो गए थे और कुछ यह भी कि वह जो कह रहे हैं वह ही ठीक है। किसी ने उनकी बात को काटा तो वह उन्हें बिलकुल भी नहीं सुहाता था। लेकिन मैंने जब तक उन्हें देखा उनमें जोश पूरा था और वह अपनी हार आसानी से नहीं मान सकते थे। गौरव की असफलता के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक के बाद एक करके लवर्स,नाम,जुर्रत और फूल आदि फिल्में बनाते रहे। ‘नाम’ में उन्होंने गौरव के साथ संजय दत्त को भी लिया। यह फिल्म सुपर हिट भी रही लेकिन इसकी सफलता का श्रेय गौरव को कम और संजय को ज्यादा मिला। कुछ लोग बताते हैं इस बात से गौरव और राजेन्द्र कुमार दोनों को दु:ख हुआ क्योंकि ‘नाम’ मूलत: उन्होंने गौरव को प्रमोट करने के लिए ही बनायी थी। कुछ करीबी यह भी बताते हैं कि ऐसे कुछ और भी मौके आये जब दत्त और कुमार परिवार के बीच मनमुटाव भी हुआ। लेकिन गनीमत यह है कि गलतफहमियां जल्द ही दूर हो गयीं और ऐसे मौके ज्यादा आये जब इन्होंने एक-दूसरे के प्रति अपना प्रेम,अपना रिश्ता बखूबी निभाया।
ऐसे दो खास मौकों के बारे में तो मैं भी जानता हूं। एक मौका उस वक्त का है जब नवंबर 1989 में लोक सभा चुनाव हो रहे थे। सुनील दत्त मुंबई की उत्तर पश्चिम सीट से दूसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे। उसी दौर में संजय दत्त की पहली पत्नी ऋचा अमेरिका में अस्पताल में दाखिल थी। तभी खबर आई कि ऋचा की तबियत ज्यादा खराब हो गयी है। यह सुन दत्त साहब को अपना चुनाव प्रचार बीच में छोड़ कर 14 नवंबर को अमेरिका जाना पड़ा। ऐसे में राजेन्द्र कुमार ने उनके चुनाव की सारी बागडोर अपने हाथ में संभाल कर खुद उनकी जगह भाषण तक दिए। ऐसे ही 1993 में जब संजू मुंबई ब्लास्ट के मामले में पहली बार गिरफ्तार हुए तो सुनील दत्त बुरी तरह सदमे में आ गए थे। ऊपर से पुलिस हर रोज दत्त साहब के घर की तलाशी के लिए आ जाती थी। तब राजेन्द्र कुमार कुछ दिन के लिए सुनील दत्त के घर में आकर ही रुक गए और दत्त साहब को हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि चिंता मत करो, बुरा वक्त आया है तो जल्द निकल भी जायेगा।
बुरा वक्त आया भी, निकला भी ,और फिर भी आ गया। आज न सुनील दत्त हैं और न राजेन्द्र कुमार। राजेंद्र कुमार तो सुनील दत्त से लगभग 6 साल पहले ही दुनिया से कूच कर गए थे। वह तारीख थी 12 जुलाई 1999 । उससे एक रात पहले ही राजेन्द्र कुमार अपने पूरे परिवार के साथ अपने लाडले बेटे कुमार गौरव का जन्म दिन मना रहे थे और 8 दिन बाद खुद राजेन्द्र कुमार का अपना जन्म दिन था। लेकिन अपने बेटे का जन्म दिन मनाकर ही वह चिर निद्रा में लीन हो गए। तब सुनील दत्त ने कुमार परिवार को पूरा सहारा दिया। लेकिन आज बस इनकी यादें शेष हैं। यादें कभी नहीं मरतीं , वे हर वक्त जिन्दा रहती हैं -कभी किसी रूप में, कभी किसी रूप में।